Tuesday, 6 August 2013

सारे जहां से अच्छा..

सारे जहां से अच्छा..

हम हिंदुस्तानी अपने देश से बहुत प्यार करते है और इसे एक मुकम्मल मुल्क बनाना चाहते हैं। ढेरों शिकायते हैं, इसके बाद भी हम कहते है, सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा। वो कौन सी बाते हैं, जो देश से हमारे प्यार को बढ़ाती हैं और वो कौन सी बातें है, जो हमें नहीं आतीं। आम व खास लोगों के साथ इस पर एक नजर
1. रिश्ते ही रिश्ते
भारत में सबसे ज्यादा प्यारी चीज हैं हमारे रिश्ते। मा-पिता-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मामा-मामी, दीदी-जीजाजी, देवर-भाभी, मौसा-मौसी..रिश्तों की लंबी लिस्ट है हमारे यहा। सिर्फ अंकल-आटी कहने से यहा बात नहीं बनती।
2. हम साथ-साथ हैं
भारतीय परंपरा में अभी भी संयुक्त परिवारों के लिए जगह है। माता-पिता अपने बच्चों ही नहीं, पोते-पोतियों तक की परवरिश करते हैं।
3. जश्न और उत्सवधर्मिता
कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या तारीख है, हमें तो जश्न मनाने का बहाना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई.. सबके त्योहार मनाते हैं हम।
4. अतिथि देवो भव..
मेहमा जो हमारा होता है- वो जान से प्यारा होता है.., इस गीत का संदर्भ लें तो हम अपने घर ही नहीं, देश में भी आने वाले लोगों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ते। आखिर ऐसा क्यों न हो, हमारी संस्कृति में अतिथि का स्थान देवतुल्य माना गया है।
5. मैं चाहे ये करूं-मैं चाहे वो करूं
क्या यह कम खुशी की बात है कि हम एक लोकतात्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल, फॉर द पीपल। यह बात हमारे लोकतात्रिक देश पर पूरी तरह लागू होती है। हमें धर्म, शिक्षा, अभिव्यक्ति, एक से दूसरे स्थान पर जाने सहित कई अधिकार मिले हुए हैं।
6. विविधता में एकता
रंग-बिरंगी है संस्कृति हमारे देश की। इसीलिए तो कहा गया है, कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी, लेकिन विविधताओं के बावजूद इस देश में एकता है।
7. बैंड बाजा बारात
इस रंगीन देश का हर आयोजन रंगीन है। जन्म, शादी व संस्कार.. जिंदगी के हर पड़ाव पर मौज-मस्ती, धूमधड़ाका हमारी फितरत है।
8. प्रतिभाओं का देश
नए विचारों व प्रतिभाओं की भारत में कोई कमी नहीं। यहा के चुनिंदा दिमाग विश्वभर में अपने ज्ञान का परचम लहरा रहे हैं। कोई भी क्षेत्र हो, हमने हर जगह अपनी काबिलीयत प्रमाणित की है।
9. परोपकार है परमधर्म
दुख किसी का भी हो, हम उसमें शामिल होते हैं और मदद का हाथ आगे बढ़ाने से पीछे नहीं हटते। पड़ोसी धर्म निभाना हो या सामाजिक धर्म.., इंसानियत अभी बाकी है यहा।
10. थोडे़ में गुजारा होता है
हमें तो कबीरदास सिखा गए हैं, साईं इतना दीजै जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए..। कम से कम संसाधनों में जीने की जिद हम भारतीयों में पैदाइशी होती है।
गुलिस्ता को क्या हुआ..

अपने देश से प्यार है तो शिकायतें भी कम नहीं हैं हमें। जानें क्या-क्या हैं ये शिकायतें।

1. भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का खेल
नौकरशाही से राजनीति तक.. भ्रष्टाचार की जडें़ यहा बहुत गहरी हो चुकी हैं। हजारों अन्ना आदोलन करें, तब शायद बदलाव आ सके।
2. हॉरर किलिंग
आजादी के इतने वर्षों बाद भी जाति व गोत्र के नाम पर ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। विकास की राह में ऐसी बातें बहुत बड़ा रोड़ा हैं।
3. टैक्स की मार
आम जनता बढ़ती महंगाई व टैक्स की मार से त्राहि-त्राहि कर रही है। आय पर टैक्स, बाहर खाने व सड़क पर चलने का टैक्स..। हम भारतीयों की पूरी उम्र टैक्स चुकाने में ही खत्म हो जा रही है।
4. ट्रैफिक जाम
कितने फ्लाईओवर बनें, मेट्रो सेवाएं शुरू हों, सड़कों पर भीड़ कम नहीं होती। घर से निकलने के बाद मालूम नहीं होता कि वापस कब लौटेंगे।
5. पर्यावरण की परवाह क्या
अपने घर में हम सफाई पसंद हैं, लेकिन बाहर कूड़ा फेंकने से बाज नहीं आते। प्लास्टिक व कचरा सड़कों पर फेंकते हुए हमारे हाथ नहीं कापते।
6. अजब लोकतंत्र की गजब व्यवस्था
आजादी के इतने वर्षों बाद भी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के अलावा आतंकवाद, जाति-धर्म जैसे बडे़ कारण हमें चिंतित करने को काफी हैं। लोकतंत्र राजनेताओं की बपौती हो चुका है। हम यही सोचकर खुश हैं कि लोकतंत्र में हैं और व्यवस्था तो खैर.. रामभरोसे है।
7. विरोधाभासों का देश
एक ओर मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज तो दूसरी ओर न्यूनतम पब्लिक ट्रासपोर्ट तक नहीं, एक ओर देवी पूजन, दूसरी ओर बलात्कार व दहेजहत्या, एक तरफ आस्था, दूसरी ओर अंधविश्वास, एक ओर विकास के नारे, दूसरी ओर गावों में मूलभूत सुविधाएं नहीं..।
8. सिर्फ अपनी मर्जी
आजादी का नकारात्मक पहलू यह है कि हम अपनी मर्जी को बहुत महत्व देने लगे हैं। अनुशासन व समय की पाबंदी का हमें ख्याल नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करना हमें जन्मसिद्ध अधिकार लगता है।
9. विकृत मानसिकता
या देवी सर्वभूतेषु वाले देश का हाल यह है कि जगह-जगह दीवारों पर और सार्वजनिक शौचालयों तक में स्त्री को अपमानित करने वाले जुमले देखे जा सकते हैं। यह बात कश्मीर से कन्याकुमारी तक लागू होती है।
10. गिले-शिकवे का देश
अंत में एक बात हम सभी पर लागू होती है। हम व्यवस्था में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए पहलकदमी नहीं करना चाहते। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि तो हम चाहते हैं, लेकिन अपने नहीं-पड़ोसी के घर में।

मैं युवाओं से अपील करता हूं कि बेहतर भारत के लिए वे एकजुट हों। भ्रष्टाचार से मुक्त होकर ही हम सही मायने में आजाद कहलाएंगे। यह हमारा दूसरा स्वतंत्रता संग्राम होगा।
-विवेक ओबेराय

राजनेताओं का असंसदीय व्यवहार मुझे समझ नहीं आता। जब ये सदन में कुर्सिया फेंकते हैं, मारपीट करते, गालिया देते हैं, कागज फाड़ते हैं, तब संविधान के प्रति इनका सम्मान कहा चला जाता है?
-अनुपम खेर

तेलंगाना का उदय: पूरी दास्तां...Telangana..

तेलंगाना का उदय: पूरी दास्तां

Telanganaकई दशकों से आंध्र प्रदेश से पृथक राज्य की मांग को
 मूर्त रूप देते हुए सरकार ने तेलंगाना के रूप में देश के 29 वें राज्य की घोषणा की है। तेलंगाना के अस्तित्व में आने के साथ ही कई छोटे राज्यों की मांग फिर से उठने की उम्मीद है:

क्षेत्रफल: 1.14 लाख वर्ग किमी.
जनसंख्या: 3.52 करोड़
जन घनत्व: 310 वर्ग किमी
प्रति व्यक्ति आय: 69 हजार
सालाना साक्षरता दर: 65 फीसद

जिले: आंध्र प्रदेश के उत्तरी हिस्से के 10 जिले आते हैं। जिनमें हैदराबाद, वारंगल, आदिलाबाद, खम्मम, महबूबनगर, नलगोंडा, रंगारेड्डी, करीमनगर, निजामाबाद और मेडक जिले शामिल हैं।

नदियां: मुसी, कृष्णा और गोदावरी

धरोहर: यूनेस्को ने इस साल मार्च में वारंगल शहर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

नाम: माना जाता है कि त्रिलिंग देश शब्द से तेलंगाना शब्द की उत्पत्ति हुई है। मान्यता है कि तेलंगाना की सीमाओं को बनाने वाली तीन पहाड़ियों कालेश्वरम, श्रीसैलम और द्राक्षाराम में शिवलिंग स्थापित हैं। इन्हीं के आधार पर त्रिलिंग शब्द की व्युत्पत्ति हुई।

पृष्ठभूमि
आजादी के पहले यह निजाम के अधीन हैदराबाद रियासत का अंग था। 1948 में निजाम शासन के पतन के बाद इसके तेलुगु भाषी जिलों को आंध्र राज्य में शामिल किए जाने के मसले पर बहस शुरू हुई।
आंध्र राज्य
मद्रास प्रेजीडेंसी के उत्तरी हिस्से के तेलुगु भाषी जिलों (रायलसीमा और तटीय आंध्र) को अलग राज्य बनाए जाने के लिए पोट्टी श्रीरामुलू के नेतृत्व में सबसे पहले मांग शुरू हुई। 1952 में उनकी मौत के बाद आंदोलन हिंसक हो गया। नतीजतन एक अक्टूबर, 1953 को आंध्र राज्य अस्तित्व में आया।

राज्य पुर्नगठन आयोग
1953 में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के लिए राज्य पुर्नगठन आयोग (एसआरसी) बनाया गया। इसने तेलंगाना को आंध्र से पृथक अलग राज्य बनाए जाने की वकालत करते हुए इसके लिए हैदराबाद राज्य के नाम का सुझाव दिया। उसमें यह भी प्रावधान किया गया था कि यदि यह आंध्र में शामिल होना चाहे तो 1961 के विधानसभा चुनाव के बाद दो तिहाई सदस्यों की सहमति से यह आंध्र प्रदेश में शामिल हो सकता है।

 

अलग तेलंगाना की अलख जगाने वाले राव की पूरी कहानी...

नई दिल्ली। दशकों पुरानी अलग तेलंगाना राज्य की लड़ाई अब मुकाम तक पहुंच गई है। तमाम विरोध और पेचीदगियों के बावजूद संप्रग सरकार ने अब आंध्र प्रदेश को विभाजित कर अलग तेलंगाना राज्य बनाने के फैसले को हरी झंडी दिखा दी है।

पृथक तेलंगाना राज्य बनाने के कांग्रेस कार्यसमिति के फैसले का स्वागत करते हुए तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने मंगलवार को मांग की कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को साझी राजधानी बनाये जा रहे हैदराबाद के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए। राव इस आंदोलन के राजनीतिक चेहरा हैं।

कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव का जीवन परिचय
तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव का जन्म 17 फरवरी, 1954 को आंध्र प्रदेश के मेदक जिले में हुआ था। वर्तमान समय में चंद्रशेखर राव महबूबनगर, आंध्र प्रदेश से सांसद हैं। इन्होंने तेलुगु साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि भी ग्रहण की है। चंद्रशेखर राव का विवाह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जे. केशवराव की पुत्री शोभा से हुआ है। इनके बेटे के.टी. रामाराव राज्य के विधायक हैं।

कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव का राजनैतिक सफर
1983 के विधानसभा चुनावों में हार के साथ चंद्रशेखर राव के राजनैतिक कॅरियर की शुरूआत हुई। आगामी 1985 के चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज करने के बाद वह विधानसभा सदस्य बन कैबिनेट में शामिल हुए। तेलुगु देशम पार्टी के सदस्य के तौर पर चंद्रशेखर राव विधानसभा उपाध्यक्ष भी रहे लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री से मनमुटाव बढ़ जाने के कारण उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
तेलांगाना राष्ट्रीय समिति की स्थापना
तेलंगाना नामक एक अलग राज्य की मांग को लेकर चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना राष्ट्रीय समिति की स्थापना की। कांग्रेस के साथ गठबंधन का निर्माण कर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने 2004 के चुनावों में हिस्सा लिया। चंद्रशेखर राव को जब यह लगने लगा कि कांग्रेस तेलंगाना निर्माण के लिए समर्थन देने की इच्छुक नहीं है तो उन्होंने कांग्रेस से अपना समर्थन वापस ले लिया। 2009 में विपक्षी दल के साथ गठबंधन कर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने नौ सीटों पर चुनाव लड़ा।
लेकिन मात्र दो सीटों पर ही जीत दर्ज हो पाई।
इस चुनावी असफलता के कारण पार्टी के अधिकांश सदस्यों ने चंद्रशेखर राव को ही दोषी ठहराया। इन आरोपों से आहत होकर राव ने कुछ समय के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 2010 के उपचुनावों में तेलांगाना राष्ट्रीय समिति ने ग्यारह सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी क्षेत्रों में जीत हासिल की।