सारे जहां से अच्छा..
1. रिश्ते ही रिश्तेभारत में सबसे ज्यादा प्यारी चीज हैं हमारे रिश्ते। मा-पिता-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मामा-मामी, दीदी-जीजाजी, देवर-भाभी, मौसा-मौसी..रिश्तों की लंबी लिस्ट है हमारे यहा। सिर्फ अंकल-आटी कहने से यहा बात नहीं बनती।
2. हम साथ-साथ हैं
भारतीय परंपरा में अभी भी संयुक्त परिवारों के लिए जगह है। माता-पिता अपने बच्चों ही नहीं, पोते-पोतियों तक की परवरिश करते हैं।
3. जश्न और उत्सवधर्मिता
कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या तारीख है, हमें तो जश्न मनाने का बहाना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई.. सबके त्योहार मनाते हैं हम।
4. अतिथि देवो भव..
मेहमा जो हमारा होता है- वो जान से प्यारा होता है.., इस गीत का संदर्भ लें तो हम अपने घर ही नहीं, देश में भी आने वाले लोगों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ते। आखिर ऐसा क्यों न हो, हमारी संस्कृति में अतिथि का स्थान देवतुल्य माना गया है।
5. मैं चाहे ये करूं-मैं चाहे वो करूं
क्या यह कम खुशी की बात है कि हम एक लोकतात्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल, फॉर द पीपल। यह बात हमारे लोकतात्रिक देश पर पूरी तरह लागू होती है। हमें धर्म, शिक्षा, अभिव्यक्ति, एक से दूसरे स्थान पर जाने सहित कई अधिकार मिले हुए हैं।
6. विविधता में एकता
रंग-बिरंगी है संस्कृति हमारे देश की। इसीलिए तो कहा गया है, कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी, लेकिन विविधताओं के बावजूद इस देश में एकता है।
7. बैंड बाजा बारात
इस रंगीन देश का हर आयोजन रंगीन है। जन्म, शादी व संस्कार.. जिंदगी के हर पड़ाव पर मौज-मस्ती, धूमधड़ाका हमारी फितरत है।
8. प्रतिभाओं का देश
नए विचारों व प्रतिभाओं की भारत में कोई कमी नहीं। यहा के चुनिंदा दिमाग विश्वभर में अपने ज्ञान का परचम लहरा रहे हैं। कोई भी क्षेत्र हो, हमने हर जगह अपनी काबिलीयत प्रमाणित की है।
9. परोपकार है परमधर्म
दुख किसी का भी हो, हम उसमें शामिल होते हैं और मदद का हाथ आगे बढ़ाने से पीछे नहीं हटते। पड़ोसी धर्म निभाना हो या सामाजिक धर्म.., इंसानियत अभी बाकी है यहा।
10. थोडे़ में गुजारा होता है
हमें तो कबीरदास सिखा गए हैं, साईं इतना दीजै जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए..। कम से कम संसाधनों में जीने की जिद हम भारतीयों में पैदाइशी होती है।
गुलिस्ता को क्या हुआ..
अपने देश से प्यार है तो शिकायतें भी कम नहीं हैं हमें। जानें क्या-क्या हैं ये शिकायतें।
1. भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का खेलनौकरशाही से राजनीति तक.. भ्रष्टाचार की जडें़ यहा बहुत गहरी हो चुकी हैं। हजारों अन्ना आदोलन करें, तब शायद बदलाव आ सके।
2. हॉरर किलिंग
आजादी के इतने वर्षों बाद भी जाति व गोत्र के नाम पर ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। विकास की राह में ऐसी बातें बहुत बड़ा रोड़ा हैं।
3. टैक्स की मार
आम जनता बढ़ती महंगाई व टैक्स की मार से त्राहि-त्राहि कर रही है। आय पर टैक्स, बाहर खाने व सड़क पर चलने का टैक्स..। हम भारतीयों की पूरी उम्र टैक्स चुकाने में ही खत्म हो जा रही है।
4. ट्रैफिक जाम
कितने फ्लाईओवर बनें, मेट्रो सेवाएं शुरू हों, सड़कों पर भीड़ कम नहीं होती। घर से निकलने के बाद मालूम नहीं होता कि वापस कब लौटेंगे।
5. पर्यावरण की परवाह क्या
अपने घर में हम सफाई पसंद हैं, लेकिन बाहर कूड़ा फेंकने से बाज नहीं आते। प्लास्टिक व कचरा सड़कों पर फेंकते हुए हमारे हाथ नहीं कापते।
6. अजब लोकतंत्र की गजब व्यवस्था
आजादी के इतने वर्षों बाद भी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के अलावा आतंकवाद, जाति-धर्म जैसे बडे़ कारण हमें चिंतित करने को काफी हैं। लोकतंत्र राजनेताओं की बपौती हो चुका है। हम यही सोचकर खुश हैं कि लोकतंत्र में हैं और व्यवस्था तो खैर.. रामभरोसे है।
7. विरोधाभासों का देश
एक ओर मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज तो दूसरी ओर न्यूनतम पब्लिक ट्रासपोर्ट तक नहीं, एक ओर देवी पूजन, दूसरी ओर बलात्कार व दहेजहत्या, एक तरफ आस्था, दूसरी ओर अंधविश्वास, एक ओर विकास के नारे, दूसरी ओर गावों में मूलभूत सुविधाएं नहीं..।
8. सिर्फ अपनी मर्जी
आजादी का नकारात्मक पहलू यह है कि हम अपनी मर्जी को बहुत महत्व देने लगे हैं। अनुशासन व समय की पाबंदी का हमें ख्याल नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करना हमें जन्मसिद्ध अधिकार लगता है।
9. विकृत मानसिकता
या देवी सर्वभूतेषु वाले देश का हाल यह है कि जगह-जगह दीवारों पर और सार्वजनिक शौचालयों तक में स्त्री को अपमानित करने वाले जुमले देखे जा सकते हैं। यह बात कश्मीर से कन्याकुमारी तक लागू होती है।
10. गिले-शिकवे का देश
अंत में एक बात हम सभी पर लागू होती है। हम व्यवस्था में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए पहलकदमी नहीं करना चाहते। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि तो हम चाहते हैं, लेकिन अपने नहीं-पड़ोसी के घर में।
मैं युवाओं से अपील करता हूं कि बेहतर भारत के लिए वे एकजुट हों। भ्रष्टाचार से मुक्त होकर ही हम सही मायने में आजाद कहलाएंगे। यह हमारा दूसरा स्वतंत्रता संग्राम होगा।
-विवेक ओबेराय
राजनेताओं का असंसदीय व्यवहार मुझे समझ नहीं आता। जब ये सदन में कुर्सिया फेंकते हैं, मारपीट करते, गालिया देते हैं, कागज फाड़ते हैं, तब संविधान के प्रति इनका सम्मान कहा चला जाता है?
-अनुपम खेर
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