Sunday, 28 July 2013

संसद...Parliament..भाग ४

संसद...Parliament..

भाग ४



Part 1- Part 2- Part 3- Part 4 -


संसद की सदस्यता-


अहर्ताए-

संविधान ने संसद मे चुने जाने के लिए निम्नलिखित अहर्ता निर्धारित की है-
१) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।
२)उसे निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची मे दिए प्रारुप के अनुसार शपत या प्रतिज्ञान लेना चाहिये।
३) उसे राज्यसभा मे स्थान के लिए काम से काम ३० वर्ष की आयु का और लोकसभा मे स्थान के लिए काम से काम २५ वर्ष की आयु का होना चाहिये।
४) उसके पास ऐसी अन्य अहरताए होनी चाहिए, जो संसद द्वारा मांगी गई हो।

जन प्रतिनिधितव अधिनियम (१९५१) मे संसद ने निम्नलिखित अन्य अहर्ताए निर्धारित की है।
१) उस व्यक्ति को, राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के उस निर्वाचन क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता होना चाहिये। यह लोकसभा एव राज्यसभा दोनो के निर्वाचन के लिए अनिवार्य है। वर्ष २००३ मे सरकार राज्यसभा के निर्वाचन के लिये यह बाध्यता समाप्त कर दी। बाद मे वर्ष २००६ मे उच्छ्तम न्यायालय ने भी सरकार के इस निर्णय हो वैध ठहराया।

२) यदि कोई व्यक्ति आरक्षित सीट पर चुनाव लढना चछ्ता है तो उसे किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्रो मे अनुसूचित जाती या जनजाति का सदस्य होना चाहिए। हालांकि अनुसूचित जाती या जनजाति के सदस्य उन सीटो के लिए चुनाव लड़ सकते है, जो उनके लिए आरक्षित नहीं है।

निरह्रताए -

संविधान के अनुसार कोई व्यक्ति संसद सदस्य नहीं बन सकता-

१) यदि वह भारत सरकार का किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ या पद धारण करता है। (संसद द्वारा तय कोई पद या मंत्री पद को छोड़कर)
२) यदि वह विकृति चित्त है और न्यायालय ने ऐसी घोषणा की है।
३) यदि वह अनुनमोचित दिवालिया है।
४) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेछा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्टा को अभिस्वीकार किए हुए है।
५) यदि वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा निरहिर्त कर दिया जाता है।

संसद ने जन प्रतिनिधितव अधिनियम (१९५१) मे निम्नलिखित अन्य निरहर्ताए निर्धारित की है-
१) वह चुनावी अपराध या चुनाव मे भ्रष्ट आचरण के तहत दोषी करार न दिया गया हो।
२) उसे किसी अपराध मे दो वर्ष या उससे अधिक की सजा न हुई हो। परंतु प्रतिबन्धात्मक निषेध विधि के अंतर्गत किसी व्यक्ति का बंदीकरण निर्हेता नहीं है।
३) वह निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्यूआरा देने मे असफल न रहा हो।
४) उसे सरकारी ठेका, काम या सेवाओ मे कोई दिलचस्पी न हो।
५) वह निगम मे लाभ के पद निदेशक या प्रबंध निदेशक के पद पर न हो, जिसमे सरकार का २५ प्रतिशत हिस्सा हो।
६) उसे भ्रष्टाचार या निष्ठहीन होने के कारण सरकारी सेवाओ से बर्खास्त न किया गया हो।
७) उसे विभिन्न समूहो मे शत्रुता बढ़ाने या रिश्वत खोरी के लिए दंडित न किया गया हो।
८) उसे इनमे छुआछूत ,दहेज व सती जैसे सामाजिक का प्रसार और संलिप्त न पाया गया हो।

किसी सदस्य मे उपरोक्त निर्हारताए सम्बंधी प्रश्न प्र राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा यद्यपि,राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग से राय लेकर उसी के तहत कार्य करना चाहिए।

दल-बदल के आधार पर निर्हारताए-

संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को संसद की सदस्यता के निर्हर तराया जा सकता है, अगर उसे दसवी अनुसूची के उपबंधो के दल बदल विधि के निम्नलिखित उपबंधो के तहत निर्हर करार दिया जा सकता है-

१) अगर वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल को त्याग करता है,जिस दल के टिकट पर उसे चुना गया हो।
२) अगर वह अपने राजनीतिक दल द्वारा दिए निर्देशो के विरुध सदन मे मतदान करता है या नहीं करता है।
३) अगर निर्दलीय चुना गया सदस्य किसी राजनीतिक दल मे शामिल हो जाता है।
४) अगर कोई नामित या नाम निर्देशित सदस्य छह महीने के बाद किसी राजनीतिक दल मे शामिल होता है।

दसवी अनुसूची के तहत निःरता के सवालो का निपटारा राज्यसभा मे सभापति व लोकसभा मे अद्यक्ष करता है ( न की भारत का राष्ट्रपति) १९९२ मे उच्छ्तम न्यायालय ने निर्णय दिया की सभापति/अद्यक्ष के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

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